Maharajganj

MAHARAJGANJ News : जिले में हर साल गूंज रही पचास हजार से अधिक घरों में किलकारी,इस ब्लाक में है जन्म की सर्वाधिक संख्या

 

 

-सुरक्षित प्रसव के लिए रंग ला रही स्वास्थ्य विभाग की  

कोशिश, इस साल 53 हजार संस्थागत प्रसव 

 

-फरेंदा ब्लाक में जन्म की संख्या सर्वाधिक, 6129 बच्चों का जन्म, कई घरों में जुड़वा बच्चे जन्मे 

महराजगंज टाइम्स ब्यूरो :- जिले में हर साल पचास हजार से अधिक घरों में किलकारियां गूंज रही हैं। सुरक्षा व संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने की सरकारी मुहिम भी रंग ला रही है। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों पर गौर करें तो इस वर्ष अभी तक 53 हजार से अधिक बच्चों का जन्म अस्पताल व स्वास्थ्य केन्द्रों पर हुआ है।  जिले की आबादी 32 लाख के करीब है। स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक हर साल जिले की आबादी में 50 हजार से अधिक वृद्धि हो रही है। स्वास्थ्य विभाग के पिछले दो साल के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2023-24 में कुल डिलीवरी 51 हजार 217 हुई। इसमें 51 हजार 163 स्वस्थ बच्चों का जन्म हुआ। 475 बच्चो की होम डिलीवरी हुई। संस्थागत प्रसव 50 हजार 742 हुआ। सबसे अधिक बच्चों का जन्म निचलौल ब्लाक में हुआ। यहां 6081 बच्चे साल भर में जन्मे। सबसे कम 1581 बच्चों का जन्म धानी ब्लाक में हुआ है। यह ब्लॉक जिले का सबसे छोटा ब्लॉक है। वर्ष 2024-25 के आंकड़ों के मुताबिक वित्तीय वर्ष में अभी तक 53 हजार 178 डिलीवरी हुई। इसमें 53 हजार 261 बच्चों का जन्म हुआ। कई जुड़वा बच्चे पैदा हुए। सबसे अधिक 6129 बच्चों का जन्म फरेंदा ब्लाक में हुआ है। 

अस्पताल जाने का नहीं मिला मौका, घर पर जन्मे 146 बच्चे 

सुरक्षित प्रसव के लिए जिला अस्पताल से लेकर एएनएम सेंटर तक सुविधा है। गर्भवती महिलाओं की नियमित जांच होती रहती है। इस वजह से प्रसव में कोई बाधा नहीं आ रही है। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2024-25 में घर पर 146 शिशुओं का जन्म हुआ। पिछले वित्तीय वर्ष में 475 होम डिलीवरी हुई। सीएमओ डॉ. श्रीकांत शुक्ल का कहना है कि सुरक्षित प्रसव के लिए प्रसव पीड़ित महिलाओं की नियमित जांच होती है। खून व अन्य मात्रा की कमी का उपचार किया जा रहा है। हाई रिस्क प्रेग्नेंसी को चिन्हित कर प्रसव के समय विशेष सावधानी बरतने का निर्देश है। प्रसव के नेटवर्क से जुड़े सभी चिकित्सक, स्टाफ नर्स, एएनएम व आशा के सहयोग से सुरक्षित प्रसव में काफी सुधार हुआ है। किसी कारणवश जच्चा या बच्चा की मौत की सूचना पर ऑडिट कराई जाती है। जिससे यह पता चल सके कि मौत की वजह क्या रही!

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